विनायक सावरकर की जीवनी : Vinayak Savarkar Biography in hindi

भारतीय स्वंतत्रा के महान क्रांतिकारक में से एक विनायक दामोदर सावरकर इनका नाम विवादों में भी  घेरा हुआ हैं ।विनायक सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भंगुर गाॅव में हुआ ।उनके पिता का नाम दामोदर पंत और माॅ का नाम राधाबाई था ।उनके दो भाई और एक बहेन थी। नौ के उर्म में ही उनकी माॅ का देहान्त हुआ और 1899 को 7 साल के बाद उन्होंने अपने पिता को प्लेग की महामारी में खो दिया ।बाद में उनकी परवरिश उनके बडे भाई गणेश नी की ।पढाई के बाद सब युवकों लेकर वो मित्र मेला गुप्त संघटना स्थापन किई ।तबसे उनमें क्रांती और भारत के लिये कुछ करनेका जज्बा जाग गया। 

   1901 कों उनकी शादी रामचंद्र चिपळूणकर कि बेटी यमुनाबाई से हुई । उनकी पत्नी यमुनाबाई के पिता ने उनको विश्वाविद्यालय की शिक्षा दि।

 1902 को उन्होंने मेर्टिक किया और पुणे के फग्य्रुसन काॅलेज से BA की पदवी लीई ।

      1904 पुणे में उन्होंने अभिनव भारती नामक संघटना की स्थापना की।1906 को शिवाजी स्काॅलरशिप प्राप्त की और शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए।मई 1909 को उन्होंने लंन्दन से  वकालत कि परिक्षा उत्तीर्ण हो गये लेकिन उनको वकालत करने के लिये अनुमती नहीं दि गई ।

वीर विनायक सावरकर

        सावरकर जी ने लिखे हुये लेख इंडियन सोशियल और तलवार नामक पत्रिका में  प्रकशित हुये । वो एसे लेखक थे जिसके लेख प्रकशित होने से पहले बॅन होते थे ।

        जून 1957 को उन्होंने द इंडियन वाॅर आॅफ इन्डिंपेण्डेंस ये किताब में  सरकार के खिलाप आझादी के पहली लढाई होगी येसा बताया था । लेकीन इस पुस्तक  को भारत में प्रकशित होने से पहले बॅन किया गया ।कुछ समय बाद में मॅडम भिकाजी कामा के पास इग्लंड में पुस्तक कि काॅफी पहुॅची ।इसी तरह उस पुस्तक कि काॅफी भारत और फ्रान्स में पहुंची ।

‌‌      वीर सावरकर लंडन में लाॅ काॅलेज के समय इंडिया हाऊस में रहते थे उस वक्त उनकी मुलाखत लाल हरद्याल से हो गई उन्होंने अभिनव भारत सोसायटी और फ्रि इंडिया के साथ से स्टुडंट हो सोसायटी उत्पादी कि इसी वक्त उन्होंने देश स्वंतत्र करने के लिये उन्होंने The history of the war of india independence किताब लिखा ।

    ‌13मई 1910 को पॅरीस से लंन्दन जाते वक्त उन्हे गिरप्तार कर लिया गया ।8 जुलाई 1910 को मारिया जाहज से सावरकर भाग निकले तब 24 दिसबंर 1910 को उन्हे आजीवन कारावास की सजा सुनाई । जब वीर सावरकर अंदमान के जेल में थे, तब उन्होंने सुना कि द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ जाएगा और जर्मनी युद्ध शुरू कर देगा।  इससे पहले, यह सच हो गया । जर्मनी की रीढ़ इंग्लैंड में या दूसरे विश्व युद्ध में कल टूट जाएगी। अगर इंग्लैंड की रीढ़ टूट गई, तो भारत को स्वतंत्रता मिल जाएगी।

   जब सावरकर को पता चला कि तुर्कस्थान के शाह ने हिटलर का समर्थन किया है।  उस समय, सावरकर ने वहाँ  एक पत्र लिखा।वहाॅ के जेलर बारी था ।इस पत्र का उल्लेख बारी के डायरी मेभी हैं ।

वीर सावरकर ने कहाॅ मुझे सरकार को एक पत्र देना है। मुझे इसके लिए अनुमति की आवश्यकता है।  सावरकर ने एक पत्र लिखकर कहा कि  तुर्कस्थान के शाह ने हिटलर को अपना समर्थन दिया है।यह इस देश के लिए खतरनाक है कि कल, हिटलर की ताकत के लिए, वह ईरान-अफगानिस्तान मार्ग से भारत आएगा और जब वह भारत आएगा, तो भारत में मुसलमानों द्वारा उसका स्वागत किया जाएगा

  इसलिए, हम सभी को अंग्रेजों का समर्थन करना चाहिए। यह देश अंदमान के लोगों के लिए खतरा नहीं बन सकता है, लेकिन भविष्य में भी। अगर मुझे प्रताड़ित किया जाता है, तफ भी  मेरे लोगों को अंग्रेजों का समर्थन करना चाहिए।  हम इसके खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हैं। अगर आपको लगता है कि मुझे बाहर नहीं निकाला जाना चाहिए, तो उन लोगों का उपयोग करें जो जेल में मेरे अन्य सहयोगी हैं।

     ‍उनका इंडियन हाउस से संबधकार्तक से उनको गिरप्तार कर लिया गया.   

   ऐसा माना जाता है की सावरकरजी ने खुद अपने लिये मृत्यू चुन लिया था  । वो उपवास कर रहे थे ।इसी वजहसे उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। 26 फरवरी 1996 को 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

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