येसा क्या विवादित था, वो तीन कृषी कानून में जो पंतप्रधान मोंदी कों वापस लेने पडे?

सालों से चल रहे संघर्ष में अब किसानों को बढी जित मिल गई है |प्रथानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 19 नवबंर2021 को 3 कृषी कानून वापस ले लिये |किसानोंने इस खूशी के मौके में बडा जश्न मनाया|

ये कृषी कानून को सप्टेंबर 2020 में लाया गया था |जिस तरह से इन कृषि कानूनों को राज्य सभा में घोषित किया गया था |अपने आप में असंविधानिक और अलोकतांत्रिक था |

इन कानूनों ने कार्पोरेट जगत के लिए आसान बना दिया होगा क्योंकि किसानों की निजी मंडियों के ट्रक्स मुफ्त बनाया गया था, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं दी गई थी, ऐसा भी प्रावधान जोड़ा गया था कि एक किसान और व्यवसायी के बीच विवाद हो गया तो इस मामले में  किसान अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाते |ऐसा प्रतीत होता है कि किसान अपनी उपज कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र थे, लेकिन वास्तव में, इन कानूनों के तहत कंपनियों द्वारा खाद्य जमाखोरी कभी भी और किसी भी कीमत पर खरीद सकती थी और अपनी मनचाही कीमत पर बेच सकती थे।  कानून का समर्थन करने वाले लोगों ने तर्क दिया कि।  छोटे किसानों को इन कानूनों से सबसे ज्यादा फायदा होगा, लेकिन यह पूरा तर्क इसी पर आधारित है।
धारणा है कि जिन कंपनियों के साथ वो व्यवहार करेंगे, उनके साथ उचित व्यवहार करेंगे, लेकिन विरोध करने वाले किसान बड़े कार्पोरेट अंधे धौद पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकते थे कि कंपनियां किसानों का शोषण करेंगी।  जिन कारणों से किसानों ने इस कानून का विरोध किया |

यह आंदोलन मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसानों का था। देश के बाकी हिस्सों के किसान इसका विरोध नहीं करते थे। वो चाहते हैं कि सरकार कानून में गारंटीशुदा मूल्य की गारंटी दे, और वे इसे बाजार समिति को बेचना चाहते हैं। वर्तमान गारंटी प्रणाली एक प्रशासनिक प्रणाली है, और इसका कोई कानूनी समर्थन नहीं था।

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सबसे पहले यह समझते हैं कि सिर्फ पंजाब और हरियाणा के किसान ही विरोध क्यों कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि धान्य (चावल) और गेहूं के लिए एक गारंटीकृत मूल्य है, और इनमें से 90% से अधिक फसलें कृषि उपज बाजार समितियों के माध्यम से केंद्र सरकार (भारतीय खाद्य निगम) द्वारा गारंटीकृत कीमतों पर खरीदी जाती हैं। क्योंकी सरकारी खरीदते है, इसलिए सरकार को गारंटीशुदा कीमत चुकानी पड़ती है। लेकिन किसानों को कमीशन, मार्केट कमेटी टैक्स आदि का भुगतान करना पड़ता है। अकेले पंजाब में यह आंकड़ा कम से कम 5,000 करोड़ रुपये है और इससे पंजाब सरकार को 3,500 करोड़ रुपये मिलते हैं |3 नए कानून के तहत किसानों को कुछ भी भुगतान नहीं करना होगा |

कृषी कानून
किसान आंदोलन

2020 भारतीय कृषी अधिनियम :2020 Indian agriculture acts

1)आवश्यक वस्तु(संशोधन) अधिनियम : इस अधिनियम के तहत, केंद्र सरकार को किसी भी फसल पर भंडारण प्रतिबंध लगाने की शक्ति है, जो अब केंद्र सरकार के पास नहीं है। कोई भी सरकार अपने अधिकारों को कम नहीं कर रही है, लेकिन इस सरकार ने किया है। पहले किसी भी वस्तु के दाम बढ़ने पर सरकार तुरंत भंडारण पर प्रतिबंध लगा देती थी। उदाहरण के लिए, हम केवल प्याज लेंगे, क्योंकि उसके लिए इस नियम का अधिक उपयोग किया गया था। अब मान लीजिए प्याज 20-25 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, और अचानक कीमत बढ़कर रु। अब कीमतों में गिरावट आने पर भंडारण की अनुमति दी जाएगी, जिससे प्याज की आपूर्ति कम हो जाएगी और कीमतें वापस सामान्य हो जाएंगी। इसका मतलब है कि सरकार के पास दोनों तरफ कीमतों को नियंत्रित करने का अधिकार है। लेकिन अर्थशास्त्र का नियम यह है कि अगर कीमतों को नियंत्रित किया जाता है और कृत्रिम रूप से नियंत्रित किया जाता है, तो यह बाजार के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

2)कृषी सक्षक्तीकरण और संरक्षण (किंमत आश्वासन और कृषी सेवा पर करार अधिनियम)
यह अधिनियम अनुबंध खेती को कानूनी मान्यता देता है। खेत तो पहले से ही था, लेकिन उसे कानूनी सुरक्षा पाने के लिए कहीं नहीं था। उदाहरण के लिए गन्ना किसान चीनी मिलों के साथ समझौते करते थे, लेकिन यह समझौता कहीं भी लिखित में नहीं है। इसलिए, यदि फ़ैक्टरी डिफॉल्ट करती है, या कम कीमत का भुगतान करती है, तो निवारण के लिए पूछने की कोई सुविधा नहीं थी। साथ ही डेयरी। इसलिए हर बार किसान आंदोलन होता था और तथाकथित किसान नेता आंदोलन पर अपना घोसला जलाते थे।


3)कृषी उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम : इन कानूनों के तहत, एक किसान अपना माल कभी भी, कहीं भी, किसी को भी बेच सकता है और खरीदार को तीन दिनों के भीतर किसान को भुगतान करना होता है। पहले किसान अपनी उपज केवल कृषि उपज मंडी समितियों में ही बेच सकते थे

अब इन कानूनों को पढ़कर आपके दिमाग में क्या आता है? कि ये सभी कानून किसानों के लाभ के लिए हैं, क्योंकि यह उन्हें सभी जुए से मुक्त करता है। तो विरोध क्यों? तो यह राजनीति है। पहले कानून से किसी को नुकसान नहीं होगा, इसलिए कोई उस कानून की बात नहीं करता। दूसरा कानून तथाकथित किसान नेताओं और (चीनी और दूध) निर्माताओं को चोट पहुँचाने वाला है, लेकिन वे खुलकर बात नहीं कर सकते, इसलिए वे पिछले दरवाजे से आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। सबसे अहम है तीसरा कानून, जो किसानों के लिए गेम चेंजर होने वाला है, लेकिन किसानों को गुमराह कर विपक्ष न सिर्फ मोदी विरोधी है, बल्कि देश विरोधी राजनीति भी कर रहा है.

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