जानिये रावण के जीवन से जुडे ऐतिहासिक रोचक तथ्य:History of Ravan

वाल्मीकी में लिखा हुआ रामायण महकाव्य के अनुसार रावण  लंकापुरी का सबसे शक्तीशाली ब्राम्हण राजा थे । रावण का जन्म नेपाल के म्याग्दी जिल्हे में हुआ ।उनके पिता विश्रवा  ब्राम्हण थे उनकी माॅ दैत्य राक्षसी कुल की थी रावण शिव के परमभक्त थे और वो बहुत शक्तीशाली, बलवान  और बुद्धिमान थे ।रावण को दशासन ‌या दशाग्रीवभी कहते हैं ।इसकी वजह हैं उसके दस मूह थे।

रावण ये रामायण के वक्त लंका का राजा था ।रावण ये नाम उनको भगवान शंकर ने दिया था ।रावण का मतलब हैं जो तेज आवाज में दहाडतों हो।रावण ने रामसे भी ज्यादा श्रेष्ठ  और विद्या प्राप्त कियी थी ।वो कला, शास्त्र , विद्या् में निपून था । रावण को चार ही वेद और छे उपनिषदे इनका संपूर्ण ज्ञान था । वो बहुत उत्तम आयुर्वेदाचार्य था ‌।वह हिंदू फल ज्योतिष में विशेषज्ञ थे।रावण को गीत संगीत का   शौक था ।वो वीणा बजाने में माहिर थे ।सभी देवता उसके वीणा बजाने देेेेेखने के लिये धरती पर आते थे । रावण दृष्ट और कपटी था । वो किसी भी महिला को उसकी सहमती के बिना छू नहीं पाता यदि उसने ऐसा किया तो वो जलके राख हो जाये गा ।

          रावण का निजी जीवन सिर्फ सुनने के बारें में नहीं यह समज नें में लिये गहरा अध्ययन करना पडता हैं । 

रावणने ब्रम्हदेव से अमर रहने के लिये वरदान मांगा था ।उस वक्त उन्होंने एक एक अपने शिर ब्रम्हदेव को देने के बाद ब्रम्हदेव को अर्पन किये थे ।नौ शिर ब्रम्हदेव को देने के बाद ब्रम्हदेव रावण से प्रसन्न हुये ब्रम्हदेव एक ही शैर्त पर उन्हे अमर होने का वरदान दिया। उन्हे एक अमृत की कुपी दि और वो उनके नाभी के पास रखी ।

ब्रम्हदेव ने रावण से कहा र्सिफ उस कुपीका रक्षण करो तुम्हारा मृत्यू नही आयेगा और जब कुपी निकाली जायेगी तब मृत्यू हो जायेगा । उसका अपने आप पर पूरा भरोसा था और कोई भी नुकसान नही पोहाचायेंगा येसी खात्री थी और इस वरदान को उन्होंने सबसे छुपाके रखा ।इसकी वजह  इसमें उसके मृत्यू के बारे में बताया था सिर्फ एक गलती रावण हो गई वो अपने बडे भाई विभिषन से बहुत प्रेम करता था उनका उसपे बहोत भरोसा था ।उन्होंने भरोसेमें ब्रम्हदेव के वरदान के बारे में बताया अपने कमर के  पास रखी कुपी के बारें में बताया ।ये भी कोई चाल होगी क्योंकी कोई भी इनसान अमरत्व नहीं पा लेता ।ब्रम्हदेव के बाद में रावन का वही प्रिय भाई विभिषन रावन के विरुद्ध हो गया ।और वो राम से मिल गया ।रावण का मृत्यू का रहस्य उन्होंने राम से कहा।और रावण का मृत्यू हो गया ।

और एक कथा बताई जाती हैं की रावणने शिव को अपनी तपक्ष्रेया करके वरदान मांगा की शिव का आत्मलिंग मांगा और ये शिव की आत्मशक्ती माना जाता है!और यही रावण ने मांग लिया शिवने ‌दीया रावण शिव कि ये शक्ती ले के अपने लंके में लें जाना चाहता था ।शिवने आत्मलिंग देते समय एक शर्त डाली की ये आत्मलिंग अपने पास ही रखना कभी भी ये निचे जमीन पे मत रखना ।कभी रख दिया तो ये शक्ती पिरसे मेरे पास आ जाये गी ।और ये आत्मलिंग जग के कल्याण के बारे में सोच कर ये ये आत्मलिंग लंका के पास रखना उचित नहीं था । रा्वण के उपर  कही विघ्न ‌डाले श्री विष्णूजी ने सूर्यप्रकाश डाल दिया । अंधार डाला ।शाम के वक्त रावण का चिंतन संध्या करने का समय था । श्री गणपती संध्या चिंतन के समय बच्चे का रूप लेकर गये  । रावण ने संध्या चिंतन करते समय शिवात्मालिंग उस बच्चे के हात में दिया और बोला इस को जमिन पे मत रखना। इस वक्त गणपती बोले में तीन बार तुमे बुलाऊंगा तुम नहीं आगये तो में उसे जमिनपे रखुंगा और ऐसाही हुआ ।रावण चिंतन के समय ‌व्यस्त होने फायदा उटाकर वो लिंग गणपती जीने  जमिनपर रखा ।यही जगह कर्नाटक में मुरुडेश्वर नाम से जानी जाती हैं।

रावण का बडा भाई कुबेर लंका का अधिपती था । लेकीन जब रावणने लंका मांगी तब उनके पिताजीने उनके शक्ती और महान बुद्धिपर विश्वास रखा और  कुबेर को समजाया और लंका रावण को दि गई । उसके उपर सब गरीब , सामान्य,धार्मिक लोक खूश थे।वो सबको खूश रख रहा था।

   रावण की बहन शूपखर्णा राम और लक्ष्मण ‌से शादी करना चाहती थी ।लेकीन उन्होंने  मना कर दिया इसलिये वो बहुत क्रोधीत हो गई  हैं और उसने सीता पे हमला कर दिया  । इस वजहसे लक्ष्मण ने उसके नाक,कान काट दिये ।शर्मिंदा होकर  वो  अपने भाई रावण के पास आ गई । रावणने इस अपमान का बदला लेना का वादा किया ।और उसे शांत किया ।

रावण का विवाह मंदोदरी से हुआ ।मंदोदरी का जन्म मंदासौर जिल्हे में हुआ ।वहा आज भी रावण कि पूजा होती हैं।  रावण एक आदर्श भाई और पति था जो अपनी पत्नी के लिये उस यज्ञ से उठ गया जिसमे वो भगवान राम की सैन्य को नष्ट  कर सकते थे ।

    रावण ने अपने शक्ती को दिखाने के लिये सिता का अपहरण किया था । लेकीन कभीभी गलत तरीके छाया नहीं पडने दिई ।

त्रेतायुग की मानवीय वैचारिक नैतिकता की अवधारणा में केवल एक अनैतिक एक परस्त्री का हरण करणा ये बुरा काम रावण के हाथों हो गया।  नैतिकता का लिखित या अलिखित मूल्य और स्वस्थ समाज की धारणा सभ्यता  करणा  पहचान है।  यह रूढ़िवादी माना जाता था और इसलिए बहुत प्राचीन है।

  रावण भगवान शिव के दर्शन के लिये जाते वक्त  कैलासपर्वत में नंदी मिले तब उनको वानर मुख वाला कहकर चिडाया और उनका अपमान किया तब नंदी ने वानर को श्राप दिया कि तुम्हारी मृत्यू वानरों के कारण होगी।

  श्री  राम जी ने जो अश्वमेथ यज्ञ किया था उसकी वजह थी वो लढाई में सफल हो। ये यज्ञ सीर्फ ब्राम्हण ही कर सकता था ।श्री राम जी के ककहने पर रावण को यज्ञ करणे को कहा ।रावण शिव की भक्ती के कारण वो यज्ञ किया

रावण
रावण की प्रतिमा

रावण कैलास पर्वत कों लंका ले जाना चाहता था शिव जी राझी नये हुये तो उसने पर्वत को ही उटाने का प्रयास किया इसे देखकर शिव जी ने अपना पैर कैलास पर्वत पर रखा ।इस वजहसे रावण उगलीं दब गई इसी कारण रावण जोर जोरसे शिवतांडव करने लगे ।
 रावण विज्ञान में भी बहोत विद्वान थे इसका उदाहरण हैं पुष्पकविमान पुष्पकविमान के 4 हव्वाईअड्डे  थे जिनके नाम थे सानवाडा ,गुरूलोपोधा ,तोतुपोलकदा और वारियापोला था ।

  रावणद्वारा लिखित शिवतांडवस्त्रोत ,अरूणसहिंता और रावण संहिता ये तीन वेद हैं ।लाल किताब के असली लेखक रावण हि हैं ।

रावण के पुत्र मेघनाद  का जन्म होने वाला था, तब रावण ने सभी ग्रहों को शुभ सर्वश्रेष्ठ स्थिति में रहने का आदेश दिया था। बाकि सारे ग्रहों ने आज्ञा का पालन किया किन्तु ठीक उसी समय शनि ग्रह ने अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया |शनि ने मेघनाद के जन्म के समय ऐसा योग बना दिया था, जिससे आगे चलकर मेघनाद लक्ष्मण के हाथों मारा जाएगा।

     रावण हर तरह से निश्चिंत था किन्तु जब उसने अपने राजपुरोहित से अपने पुत्र की कुंडली बनाने को कहा तब उसे पता चला कि शनिदेव ने उसकी आज्ञा का उलंघन किया है। उसे अपार दुःख हुआ और उसने ब्रह्मदण्ड की सहायता से शनि को परास्त कर बंदी बना लिया।रावण ने दंड स्वरूप शनिदेव की टांग पर प्रहार कर शनिदेव की एक टांग भी तोड़ दी|

    कहा जाता है कि रावण के दरबार में नवग्रह सदैव उपस्थित रहते थे किन्तु शनिदेव से विशेष द्वेष/ विशेष दंड के कारण उन्हें रावण सदैव अपने चरण पादुकाओं के स्थान पर रखता था। बाद में लंका दहन के समय महाबली हनुमान ने शनिदेव को मुक्त करवाया।

रावण एक बार बाली से हार गये थे ।बाली को सूर्यदेव का वरदान था और रावण को शिवजी ने दिये वरदान के अंहकार से  बाली को परेशान करना शुरू किया ।जब बाली बहोत परेशान हुये तो उसने रावण के सिर को भुजाओं दाबा और उड गये उन्होंने रावण को ६ महिने बाद छ़ोड दिया ताकी  उसका अहंकार मिठा सके और कुछ सिख सके।

    रावण बहुत विद्वान पंडित था उसको चार वेद और छे उपनिषदों का पूरा ज्ञान था ।हर विषय का एक एक विद्वानोंसे थी और इस 10 पंडितोंकी विद्वानता उसमें संपूर्ण भरी थी इस लिये उसे दस मूह वाला करते हैं और उसमें तिच्छ्या करते हैं ।उसके पंडित की जानकारी राम को भी थी राम उसको आदरपूर्वक महाब्राम्हण‌ कहते थे जब रावण अपनी मरन अवस्था में था , तो ‌राम ने उन्हे नमस्कार किया ।राम ‌ने लक्ष्मण को कहा की राजनिती ,शक्ती का महाग्याज्ञी  विदा हो रहा हैं ।रावण के पास जाकर ‌रावण का जिवन का रहस्य और उसके महानता को समजों ।

   रावण वध करने के बाद उसके शरीर का  क्या? किया गया आज भी बताया नहीं गया हैं ।

रावण
कोणेश्वरम मन्दिर में रावण की मूर्ति  

भारत के दक्षिण  हिस्से में  रावण को भगवान के रूप में पुजा जाता हैं।  कानपूर  में कैलास मन्दिंर में साल  में एक बार दशहरे को खुला करके रावण की पूजा कि जाती हैं । 

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