भगत सिंह की जीवनी: Biography of Bhagat Singh in hindi
भगत सिंह का जन्म लायलपुर जिले बगा गाव में २७ सिंतबर १९०७ को हुआ ।उनके जन्म के समय उनके पिताजी सरदार विरानसिह जेल में थे और उनकी माॅ विद्यावती के वो तिसरी सतांन थी ।उनका घर का मौहोल देश प्रेमी था । उनके चाचा अजित सिंह भारतीय देश भक्ति ऐसा मिशन का स्वतंत्र सेनानी थे ।वो बहादूर ,धाडसी वृद्धी के और पति्निधी की भूमिका बजाते थे । वो पढ़ाई में अवल थे ।बचपन में ही उनके मन देशभक्ति सन 1916 भगत सिंह लाहौर मे डी ऐवी विद्यालय मेंलाला लजपतराय और रासबिहारी बोस से मुलाकात हो गई।
13 अप्रिल 1919 बैसाखी के दिन पंजाब में जालियनवाला बाग हत्याकांड हुआ था। तब वो स्कूल में ते वहाँ उनको वो बात पत्ता चली। तो वो वहाँ से 12 मील चलकर जालियनवाला बाग गये ।इनमें सैकड़ो लोगों की जान गई ।उन्होंने काॅलेज छोड़ दिया और भारत देश की आझादी मिलने के लिये 1926 को नौजवान भारत सभा की स्थापना की। और उस दिन 1 ऑगस्ट 1920 गांधीजी ने असहयोग आंदोलन करने की धानी। ब्रिटिश लोगों से कोई भी वस्तू, कोनसी माँग पूरी नहीं की जाएगी।
वो गांधीजी के विचारोंसे प्रेरीत थे लेकिन उनके अहिंसात्मक आंदोलन में भाग लिया। महात्मा गांधी जी के विचारधारा से वो उलट ये सोचते थे।उन्होंने गांधीजी के विचारोंसे दुसरी पार्टी में गये।
5फरवरी 1922 को गोरपूर जिल्हे के ठाने में में ब्रिटिश लोंगोंने आग लगवाई थी। इसी कारण गांधीजीने अपना असहयोग आंदोलन बंद करवाया तब भगतसिंह नाराज हो गये । और उनको आंदोलन करते गुस्सा आ गया। उनको हिस्सा करना अनुचित नहीं लगा ।
9 ऑगस्ट 1925 को ब्रिटिश लोगों को काकोटी रेल्वेस्टेशन लूट मार किये था। इसी लिए उसे काकोटी कांण्ड कहते हैं। रामप्रसाद विस्मील चार क्रांतिकार को फांसी दि गई और 16 क्रांतिकारी जेल करवाया ।क्रांतिकारीयों कों फासी कारावास देने कारन उन्होंने अपनी पार्टी भारत नौजवान भारत
1928 को हिदुंस्थान सोसलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन चंद्रशेखर आझाद के साथ उनके नया नाम उन्होंने मिलके सायमन गोबॅक साथ नारा लगाया।
। लौहोर के रेल्वे स्टेशन पर खड़े रहकर नारा लगाते रहे। जिसमें लाटी चार्ज हुआ। जिसमें लाला लजपतराय पुरे घायल हुए और उनकी मौत उनके मृत्यू को बदला लेने के लिये भगतसिंह 17 डिसेंबर 1928 उनकी पार्टी ने मौत स्फोटक मारने की योजना बनाई ।लेकिन उन्होंने गलती से असिस्टंट पुलिस को मार दिया। और वहा बचकर भाग निकले, लेकिन ब्रिटिश सरकार उन्हें ढुंड रही थी ।इसलिए उन्होंने अपनी ढाडी और बाल कटवाये और वहाँ से भाग निकले।
वो खून से लबालब थे तबी उनकी माॅ ने उनको शादी के लिए बोला लेकिन भगत सिंह को शादी नहीं करनी नहीं थी वो बोले आझादी ही मेरी दुल्हन हैं।
उन्होंने अग्रोंजो के खिलाफ योजना बनाई ।उसके लिए उन्होंने चंद्रशेखर आझाद, भगत सिंह, राजदेव व सुखदेव एकत्रित आ गये।
उनके क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त को साथ लेकर उन्होंने ब्रिटिश असबेंली हाॅउस में बम फोड दिया। जो बम सिर्फ आवाज करता है उसे कोई हानी नहीं होती और इसके बाद उन्होंने ईनकिलाब जिंदाबाद की घोषणा देणा चालू किया।
भगत सिंह को जेल में यातना दि गई ।उस समय भारतीय कैदीयोंसे अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। उनको ना खाना अच्छा, ना कपड़े अच्छे थे। अग्रोंजो कैदीयों के लिए सब बराबर था।
भगतसिंह कहते थे सबके लिए कानून बराबर होना चाहिए, तबी उन्होंने जून 1929 को जेल में ही आंदोलन चालू किया। उन्होंने अपनी माँग पूरी करने के लिए भूकहडताल चालू किया।
उन्होंने वहाँ पर लेख और चिठ्ठी या लिखी । उन्होंने अग्रेंजी मैं नास्तिक क्यों हूँ ? लेख लिखा ।
13 सितबंर 1919 को 63 दिनोंकी भूकहडताल में यतीन्द्रंनाथ दास ने अपणा प्राण गवाया ।
7 अक्तूबर 1930 को अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को विस्फोट पदार्थ अपराध के लिये फासी की सजा सुनाई।
जब जेल के अधिकारी फासी का वक्त हो गया बोले तब वो बोले रूको एक क्रांतिकारी दुसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले और वो गले लगे। बाद में उन्होंने किताब छत के यहाँ उछाली और बोले अब ठिक है चलो।
23 मार्च 1931 को शाम के 7बज के 33 मी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फासी दी गई। वो तभी लेनिन की जीवनी पढ रहे थे। उनको तब आखिरी इच्छा पूछी तब वो बोले उन्हे वो लेनिन की जिवनी पढ रहे हैं और ये पूरी करने का वक्त दे।
फासी के बाद कही दंगे आंदोलन ना बड जाये इसलिए अंग्रोंजोने पहले उनके मृत्य शरीर के तुकडे किये और जला दिया ।गाॅव के लोगों ने जब आग जलती दिखी तो करीब आगये। डरकर अंग्रोंजोने उनके लाश के तुकडे सतलुज नदी में फेंके और भाग गये। जब गाववालों ने देखा तब उन्होंने वो मृत्य शरीर के तुकडों कों एकत्रित करके विधिमय दाहसंस्कार किया।
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