संभाजी महाराज की जीवनी | Sambhaji Maharaj Biography in Hindi
मराठा साम्राज्य के छ्त्रपती,मराठा के सम्राट संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरदंर के किल्ले में हुआ। छत्रपती शिवाजी महाराज के जेष्ठ पुत्र संभाजी महाराज थे ।बचपन से वो बुद्धिमान और धाडसी थे । संभाजी महाराज 2 साल के हो गये और उनकी मातोश्री सईबाई का देहान्तं हो गया ।तब से उनको जिजाबाई उनके दादीने उनका पालन किया।13 साल की उम्र उन्होंने 13 भाषा बोलना सीखी थी।
घोडसवारी,शस्त्रविद्या,तीरबाजी,शास्त्र में वो तरबेज थे। जादा से जादा वक्त वो तलवारबाजी करते थे । गणेश भगवान और महादेव भगवान जी की वो आराधना करते थे।
छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपने 9 साल के संभाजी पुत्र को कहा हमारे साथ चलो आग्रा के मुघल औरंगाबाद को मिलने जब वो गये तब मुघल औरंगजेब ने छत्रपती शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की बढी बेइज्जीत की और उनकों कारागृह में बंदी किया।तबी संभाजी बडी चालबाजी से शिवाजी महाराज को वहाॅ से निकाला और वो भी वहाॅसे निकले रायगड पहुचें। शिवाजी महाराज युद्ध में व्यस्त रहते थे । तबसे 19 साल के संभाजी महाराज ने बुधभूषणाम , नखशिखांत , नायिकाभेद और सातशातक ये तीन संस्कृत ग्रंथ लिखे।
संभाजी महाराज का विवाह र्शिके घराने की कन्या येसुबाई से हुआ । उन्हे एक पुत्र हुआ उसका नाम शाहू रखा,वो हिन्दंवी स्वराज्य के चौथे शासक थे । उन्होंने हि पेशवाई शूरवात की महाराष्टृ में कि थी।
संभाजी महाराज जीवन में बहुत संघर्ष कर रहे थे । शिवाजी महाराज की दुसरी पत्नी सोयराबाई अपने बेटे को हिंदवी स्वराज्य उत्ताराधिकारी बनने का सोच रही थी । सोयराबाई की इच्छा के वजहसे शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के बिच दरार आ गई ।तभी संभाजी महाराज गुससे हिंन्दवी स्वराज्य छोडकर दिलरखान से मिले । लेकीन वो लोग हिंन्दवी स्वराज्य को उखाटने की बात से उनको अपनी गलती का अहसास हो गया ।और वो हिंन्दवी स्वराज्य में लौट आये और अपनी गलती के लिये शिवाजी महाराज से माफी मांगी।
संभाजी महाराज को जब शिवाजी महाराज ने मधुरा छोड दिया तब संभाजी महाराज वहा ढेड साल रहे ।वही से संभाजी राजे संस्कृत बोलना सिख गये ।तबी उनको कवी कलश मिल गये । संभाजी महाराज उनको अपना सच्चा दोस्त और गुरू भी मानते थे।
1691में छत्रपती शिवाजी महाराज वीरयोद्धा का देहान्तं हो गया तब स्वराज्य की सारी जिम्मेदारी संभाजी महाराज जी ने संभाली तभी राज्यभिषेक के लिये सोयराबाईने अपने बेटे राजाराम का राज्यभिषेक करना चाहते थे । लेकीन सोयराबाई के भाई हंम्बीराव मोहिते ने संभाजी राजे का साथ दिया।

16 जानेवारी 1681 को संभाजी महाराज का पन्हाला किल्ले पर राज्यभिषेक हुआ और उनको छत्रपती घोषित किया था।औरंगजेब को शिवाजी महाराज की मृत्यू से खुशी हुई । उसने सोचा अब सब किल्ले हमारे लेकीन संभाजी महाराज ने औरंगजेब से सब किल्ले लूट लिऐ. औरंगजेब ने 1682 को उपर हमला किया,औरंगजेब की ताकत संभाजी राजे सभी बातोंमे अधिक थे । औरंगजेब 27 साल तक महाराष्ट्र राज्य जितने का प्रयास करता रहा लेकीन सफल नहीं हुआ । औरंगजेब ने संभाजी महाराज को मारने के लिये हुसेन अली को भेज दिया
औरंगजेब भारत के लोग का धर्मपरिवर्तन करना चाहता था ।औरंगजेब को गोवा के पोर्तुगीजोसें मदत मिल रही थी। लेकीन संभाजी महाराज शक्तीशाली और धाडसी थे ।उनका नाम लेतेहीं लोग भाग जाते थें । गोवा के कई वर्षो से पोर्तुगीज की अत्याचार और यातना सहन कर रहे थे ।तभी संभाजी महाराज ने सालों के बाद उनकों स्वंतत्र्य दिया।
फरवरी 1689 को संभाजी महाराज एक गुप्त बैठक के लिये कवीकलक्ष के साथ संगमेश्वर चले गये ।और ये बात संभाजी महाराज के पत्नी के भाई (गुणाजी शिंदे )को मालुम थी। उन्होंने बेईमान होकर ये बात औरंगजेब को बताई ।तबी संगमेश्वर के मुकर्रबखान ने छापा डाला और छत्रपती संभाजी महाराज और कवी कलश को बंदी बनवाया और औरंगजेब के सामने ले आये । संभाजी महाराज को जब लेके आ गये । तब औरंगजेब सिंहासन से निचे उतरा और उसने अल्लाह की याद के घुटने निचे टेके तबी बंधि बने कवी कलश संभाजी महाराज की ओर देखकर बोले राजे देखिये खुद आलमगीर आपके नतमस्तक हुआ हैं ।कवीकलश जी ने उस परिस्थिती में धैयता और विरता दिखाई । औरंगजेब ने दोंनों कों बेदमिस्त से मारना शुरू किया उनके हाथ में झुनझना बांधा और उनकों उॅटोंकें उपर टांग कर पुरे तुलापुर शहर में घुमाया ।उनको बडी बहेरेमईसे मारा गया,पत्थर फेके गये । हर बात पे यातना के साथ वो धर्मपरिवर्तन के लिये कहते थे और साथ सारे किल्ले मुझे देदो और जिसने मदत कि ओ बतावो तो तुमे जिने का अवसर दुंगा । लेकीन छत्रपती संभाजी महाराज अपने बातों मे ठोस से बोले,”मराठों की जमींन तुम्हे नहीं दुंगी। अपने धर्मोसे गद्दारी नहीं करूंगा।कितना भी मारो अगले जन्म अपने धर्म में ही जन्म लूंगा”.
औरंगजेब ने उनको बेईरहीसें मारा उनके शरीर को नाखून आखुडे आखोंमें मिरची डाली घावों पर नमक लगवाया ।जलती सलीया आखों में डाली । उन्होंको दर्द बहुत हुआ । लेकीन वो ढगमाये नये।कभी अपना फैसला नहीं बदला । संभाजी महाराज की जीभ काटकर कुत्ते के आगे फेक दि । हातोंके नाखून काहात काटें पाव काटने लगें।बालोंकों काटा ।शरीर की चामडी निकाली । लेकीन संभाजी महाराज माने के लिये तयार ही नये थे । औरंगजेब आखिर बोला हार गया तुम्हारा पिछे । लेकीन तुम्हारा जैसा मेरा कोई बेटा होता तो उसने कब का मुघल सलतन बना होता।
तेरे आगे में हार गया और उनका शरीर काटने को कहा । संभाजी महाराज के शरीर के तुकडे किये।२४ मार्च 1689 को संभाजी महाराजने हिन्दुं धर्म के लिये अपने प्राणों की आहुती दि । संभाजी महाराज के शरीर के तुकडों कों तुलापुर नदी में फेका । औरंगजेब समस्त मुघल राज्य में अमानव अदैनिय राजा था ।सब मराठे लोक एक हो गये । संभाजी महाराज के शरीर को तुकडोंसे सिलाया ।और उनका अतिंमसंस्कार किया।
येसे हमारे शंभू महाराज को हमारा कोटी कोटी प्रणाम !
बाद में मराठा भूमी एक हो गई ।दुबारा युद्ध हुआ और इस युद्ध में औरंगजेब हार गया ,उनका दंखन का महाराज बनने का ख्वाब खतम हुआ।